गेजेट क्या है, और प्रधानमंत्री इसकी सहायता से देश कैसे चलाते है ?

गेजेट क्या है, और प्रधानमंत्री इसकी सहायता से देश कैसे चलाते है?


प्रधानमंत्री एवं एक आम आदमी में सिर्फ एक अंतर है, जिससे फर्क पड़ता है- पीएम के पास गेजेट छापने की शक्ति होती है, और इसी गेजेट से पीएम पूरा देश चलाता है।

(i) पेड मीडिया का गेजेट पर स्टेंड - पेड मीडिया पार्टियाँ, पेड मीडिया नेता, पेड राजनीति शास्त्र के प्रोफ़ेसर आदि इस बार पर काफी जोर देते है कि नागरिको को इस तथ्य के बारे में सूचित नहीं किया जाना चाहिए कि देश की व्यवस्था में बदलाव लाने के लिए गेजेट में छपी हुयी इबारत की कितनी निर्णायक एवं शक्तिशाली भूमिका होती है।

(ii) हम रिकालिस्ट्स का एक सबसे महत्त्वपूर्ण लक्ष्य भारत के नागरिको तक यह बात पहुंचाना है कि

गेजेट नोटिफिकेशन क्या है, 

और  देश की व्यवस्था में बदलाव लाने के लिए सबसे सीधा, सरल और प्रभावी तरीका यह है कि अमुक प्रक्रिया को गेजेट में प्रकाशित किया जाए। और एक बार जब भारत के नागरिक गेजेट नोटिफिकेशन की शक्ति से परिचित हो जायेंगे तो वे जान जायेंगे कि देश में व्याप्त किसी भी समस्या का समाधान कितना आसान है।


(1) गेजेट नोटिफिकेशन या राजपत्र अधिसूचना क्या है?

गेजेट यानी राजपत्र। राजपत्र यानी जिस पत्र पर राजा की मुहर हो। यह 5,000 साल पुराना दस्तावेज है, और पूरी दुनिया में सभी सभ्यताओं में शासन चलाने के लिए शासक इसी दस्तावेज का इस्तेमाल करते आये है और आज भी शासन चलाने के लिए इसी का प्रयोग होता है। लोकतंत्र में पीएम राजा है, और राज मुहर है अशोक स्तम्भा जिस पत्र पर राजा राज मुहर लगाएगा वह राजाज्ञा है, यदि कोई व्यक्ति राजाज्ञा की अवहेलना करेगा तो उसे दंड का सामना करना पड़ेगा। इस तरह गेजेट वह प्रपत्र है जिसमे पूरे राष्ट्र की शक्ति निहित है।

भारत या किसी भी देश की सेना एवं पुलिस इसी राजपत्र के अधीन काम करती है। पीएम के पास इसे छापने की शक्ति होने के कारण सेना एवं पुलिस पीएम के नियंत्रण में आ जाती है। यदि कोई व्यक्ति या अधिकारी पीएम के निर्देशों का पालन नहीं करेगा तो पीएम सेना एवं पुलिस का इस्तेमाल करके उसे दंड दे सकता है। तो पीएम देश के विभिन्न अधिकारियों एवं नागरिको को गेजेट के माध्यम से आदेश देता है, एवं वे इसका पालन करते है। इस तरह इस एक कागज पर पीएम पूरा देश चलाता है। चन्द्रगुप्त से लेकर , अकबर एवं वायसराय तक सभी शासक इसी कागज से देश चलाते थे। शासन बदलने से सिर्फ मुहर बदल जाती है, किन्तु गेजेट वही रहता है।


(2) गेजेट नोटिफिकेशन या राजपत्र अधिसूचना कैसे काम करती है?

गेजेट नोटिफिकेशन या राजपत्र अधिसूचना एक पुस्तिका है जिसका प्रकाशन केन्द्रीय एवं राज्य मंत्रियो द्वारा हर महीने या समय समय पर जब आवश्यक हो तब किया जाता है। गेजेट में मंत्रियो द्वारा प्रशासनिक अधिकारियों के लिए आदेश जारी किये जाते है। कलेक्टर आदि अधिकारी सिर्फ वही कार्य करते है जो गेजेट में लिखा होता है, अधिकारी को इस बात से कोई सरोकार नहीं होता कि अमुक मंत्री ने प्रेस में या पब्लिक रेली के भाषण में क्या कहा था।

उदाहरण के लिए यदि कोई मंत्री प्रेस कोंफ्रेंस में, या रेली में या अपने पार्टी के मेनिफेस्टो में यह कहता है कि “प्रत्येक परिवार को 20 लीटर कैरोसिन मिलेगा, लेकिन यदि मंत्री ने गेजेट में 10 लीटर लिखा है तो कलेक्टर प्रत्येक परिवार को 10 लीटर कैरोसिन ही देगा। क्योंकि कलेक्टर को वही करना होता है जो गेजेट में लिखा गया है, न कि वह करना होता है जो मंत्री अपने भाषण में कह रहा है। यदि कलेक्टर आदि अधिकारी गेजेट की अवहेलना करेंगे तो उनकी नौकरी जा सकती है, उन पर फाइन हो सकता है, पेंशन रुक सकती है और यहाँ तक कि उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है।

यह दुःख का विषय है भारत में बहुत ही कम कार्यकर्ता गेजेट नोटिफिकेशन की शक्ति के बारे में जानते है, और हमारा सबसे पहला लक्ष्य भारत के अधिकतम नागरिको एवं कार्यकर्ताओ तक यह जानकारी पहुँचाना होना चाहिए कि -- यदि हम देश में कोई भी बदलाव लाना चाहते है तो किसी पार्टी या नेता को वोट देने से अमुक बदलाव नहीं आएगा, बल्कि बदलाव सिर्फ तब आएगा जब प्रधानमंत्री इसके लिए गेजेट नोटिफिकेशन निकालेंगे।

उदाहरण के लिए जब 1942 में बंगाल के अकाल में लाखों लोग भूख से मरने लगे एवं वायसराय को यह अंदेशा हुआ कि बड़े पैमाने पर भुखमरी के कारण वे विद्रोह कर सकते है, तो वायसराय ने गेजेट में राशन कार्ड प्रणाली लागू करने के लिए निर्देश निकाले और भारत में राशन कार्ड व्यवस्था लागू हो गयी। द्वितीय विश्व युद्ध के कारण तब गोरो ने बंगाल एवं का सारा चावल उठाकर अपनी फौजों को भेज दिया था, इससे अनाज की कमी हो गयी एवं भुखमरी के कारण बड़े पैमाने पर लोगो की जाने गयी

(3) तो पीएम किस तरह सोचता है, और क्या काम करता है ?

पीएम का काम सिर्फ यह सोचना है कि मैं गेजेट में ऐसा क्या छाप दू, कि ऐसा हो जाये। और जब पीएम यह सोच लेता है कि यह इबारत गेजेट में छाप देने से ऐसा हो जाएगा, तो पीएम उसे गेजेट में छाप देता है। उदाहरण के लिए, यदि पीएम सोचता है कि देश के प्रत्येक गरीब से गरीब नागरिक का बैंक में खाता होना चाहिए ताकि गरीबो को सुविधा मिले, बैंको की ताकत बढे और अर्थव्यवस्था पर बैंको का ज्यादा से ज्यादा नियंत्रण स्थापित हो। तो पीएम सबसे पहले यह सोचेगा कि मैं गेजेट में क्या छाप दूं कि ऐसा हो जाए।

फिर पीएम गेजेट उठाता है और उसमे छापता है कि -- “सभी राष्ट्रीयकृत बैंको के निदेशको को निर्देश दिए जाते है कि यदि कोई नागरिक सिर्फ आधार कार्ड लेकर आये तो भी वे उसका जीरो बैलेंस एकाउंट तत्काल खोलकर दें" अब अगले दिन से लोग देश भर के बैंको की ब्रांचो में आधार कार्ड लेकर पहुंचेगे और जन धन योजना लागू हो जाएगी। अब बैंक जीरो बेलेंस एकाउंट खोलने से इनकार नहीं कर सकता। क्योंकि यह आदेश गेजेट में आया है। यदि वे अवहेलना करेंगे तो जेल जायेंगे।

फिर पीएम सोचता है, कि अब मैं और क्या करूं कि बैंको की ताकत और भी बढे। तो वह गेजेट में छापता है कि, सभी नागरिक अपने 1000 एवं 500 के नोट अगले 2 महीने के अंदर बैंको में जमा करवा कर नए नोट ले ले, क्योंकि 2 महीने के बाद ये नोट गैर कानूनी हो जायेंगे। पीएम इसी गेजेट में बैंको के लिए यह निर्देश भी छापता है कि यदि कोई व्यक्ति 1000-500 के नोट लेकर आये तो उन्हें नए नोटों से बदल दो। पीएम गेजेट में रिजर्व बैंक गवर्नर के लिए यह भी छापता है कि वह इतने उतने 2,000 के नए नोट छापकर बैंको को दे दे। और इस तरह पीएम गेजेट का इस्तेमाल करके एक घंटे में देश भर को हिला कर रख देता है !!!

यदि पीएम टीवी पर आकर यह बोलता कि बैंको में जाकर नोट बदल लो तो कोई भी बैंक उनके नोट नहीं बदलता था। जब पीएम नोटबंदी गेजेट में निकालेगा तब ही नोट बंदी लागू होगी। तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि पीएम भाषण अच्छा देता है या मौन रहता है, या अच्छा आदमी है या बुरा, राष्ट्रवादी है या हिंदूवादी है, फर्क सिर्फ इस बात से पड़ता है कि वह गेजेट में क्या छाप रहा है। यदि आप किसी पीएम का आकलन करना चाहते है तो उसके द्वारा छापे गए गेजेट को पढ़िए। उनके भाषण सुनने से आपको यह कभी अंदाजा नहीं होगा कि पीएम कैसा काम कर रहा है। भाषण और बयान देना कला का क्षेत्र है शासन का क्षेत्र नहीं है। शासन की गीता गेजेट है।


(4) प्रधानमंत्री का दफ्तर : पीएम को अपने दफ्तर में काम करने के लिए सिर्फ 4 वस्तुओ की जरूरत होती है - कुर्सी, टेबल, कलम और गेजेट !! कुर्सी, टेबल और कलम सभी दफ्तरों में होती है, लेकिन गेजेट सिर्फ पीएम एवं सीएम के पास होता है। पीएम गेजेट का इस्तेमाल करके पूरे देश को हिला सकता है, लेकिन बिना गेजेट के पीएम एक पत्ता तक नहीं हिला पायेगा !! तो पीएम गेजेट में इबारतें छापने के अलावा जो भी गतिविधियाँ करता है, उससे कोई निर्णायक बदलाव नहीं आता, बदलाव सिर्फ तब आएगा जब वह गेजेट उठाएगा।

उदाहरण के लिए, यदि पीएम चाहता है कि, भारत में पुलिस एवं जजों के भ्रष्टाचार में कमी आये तो सबसे पहले पीएम को यह सोचना पड़ेगा कि मैं इसके लिए गेजेट में क्या छापू !! यदि पीएम भारत में पुलिस एवं जजों के भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं ला पा रहा है तो इसकी सिर्फ 2 वजह है :-


1. पीएम को वह इबारत नहीं सूझ रही है जिसे गेजेट में छापने से पुलिस एवं जजों के भ्रष्टाचार में कमी आएगी, या 

2. पीएम पुलिस एवं जजों का भ्रष्टाचार कम करने के लिए आवश्यक इबारत जानबुझकर गेजेट में छापना नहीं चाहता।


स्थिति (1) में पीएम निकम्मा है, और स्थिति (2) में पीएम भ्रष्ट है तथा पुलिस-जजों का भ्रष्टाचार कम करने में उसकी कोई रुचि नहीं है !! और व्यवहारिक सच्चाई यही है कि पीएम कभी निकम्मा या अक्षम नहीं होता, क्योंकि उनके पास सलाह देने वाले काफी बुद्धिमान व्यक्तियों का समूह उपलब्ध होता है।


(5) प्रधानमंत्री के गेजेट निकालने की प्रक्रिया एवं सीमाएं क्या है?

पीएम को गेजेट निकालने के लिए संसद से कोई बिल वगेरह पास करने की जरूरत नहीं होती है। पीएम कैबिनेट से कोई भी प्रस्ताव पास करके उसे गेजेट में निकाल सकता है। कैबिनेट से पास होने के बाद सेक्रेटरी कागज लेकर राष्ट्रपति भवन जाएगा और राष्ट्रपति जी से इस पर ठप्पा लगवा लेगा। राष्ट्रपति द्वारा साइन होने के साथ ही यह कागज गेजेट में छपेगा और गेजेट में छपने के अगले मिनिट से ही यह आदेश देश में बिजली की गति से लागू हो जायेंगे। तुरंत प्रभाव से। कोई समय सीमा नहीं। गेजेट में यदि रात को 9 बजे कोई आदेश निकला है तो 9 बजकर 1 मिनिट पर वे आदेश लागू हो जाते है।


(5.1) यदि केबिनेट पीएम के प्रस्ताव पर साइन करने से मना करे?

वैसे भारत में पिछले 70 सालों से हर समय की रूटीन प्रेक्टिस यही है कि, कैबिनेट के मंत्री को यह पता नहीं होता कि वह किस प्रस्ताव पर साइन कर रहा है। मीटिंग में मंत्रियो के सामने कागज रख दिए जाते है, और वे इस पर साइन करके निकल जाते है। मंत्री को पता होता है कि यदि मैंने इसे पढ़ा तो मेरा मंत्रालय जा सकता है। तो वे पीएम के सामने इसे पढने का अभिनय भी नहीं करते। यदि कोई मंत्री दिमाग दिखाता है तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि पीएम को यह पॉवर है कि वह कैबिनेट के किसी भी मंत्री को या सभी मंत्रियो को नौकरी से निकाल सकता है। इस तरह पीएम अकेला कैबिनेट में रह जाएगा, और प्रस्ताव पास करके गेजेट में छाप देगा। और बाद में किन्ही और सांसदों को कैबिनेट मंत्री बना देगा। कैबिनेट बनाने का पूरा अधिकार पीएम के पास होता है। इसीलिए पीएम ही कैबिनेट है।


(5.2) क्या संसद पीएम को कोई आदेश गेजेट में निकालने से रोक सकती है ?

पीएम वे सभी क़ानून, नियम, निर्देश, आदेश आदि गेजेट के माध्यम से लागू कर सकता है, जो भारत में संसद द्वारा पास किये गए किसी मौजूदा कानून का उलंघन नहीं करते। उदाहरण के लिए भारत में भारतीय दंड संहिता संसद द्वारा पास की गयी है, अत: पीएम कैबिनेट से अनुमति लिए बिना भारतीय दंड संहिता में बदलाव नहीं कर सकता। इसी स्थिति में पीएम को संसद की अनुमति लेनी होगी। लेकिन संविधान में पीएम को इस तरह की कई शक्तियां दी गयी है, जिनका इस्तेमाल करके पीएम संसद को by pass कर सकता है :


1. यदि पीएम के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है तो वह दोनों सदनों का सयुंक्त सत्र बुलाकर में बिल पास कर सकता है। उदाहरणके लिए वाजपेयी जी के पास राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण पोटा बिल गिर गया था। अत: उन्होंने संयुक्त सत्र में पोटा पास किया और इसे गेजेट में निकाल दिया। 

2. यदि पीएम के पास राज्यसभा में भी बहुमत नहीं है और संयुक्त सत्र में भी बहुमत नहीं है तो पीएम किसी भी बिल पर मनी बिल का लेबल लगाकर इसे लोकसभा से पास कर सकता है। यदि किसी बिल पर मनी बिल का लेबल लगा दिया जाता है तो यह राज्य सभा में नहीं जाता, और लोकसभा से पास होने बाद यह सीधे गेजेट में छप जाता है। और पीएम के पास लोकसभा में हमेशा बहुमत होता है। क्योंकि पीएम लोकसभा के बहुमत से ही बनता है। 

3. यदि लोकसभा में कोई सांसद बिल पर हाँ का ठप्पा लगाने से मना करते है, तो पीएम व्हिप जारी कर सकता है। और व्हिप जारी होने के बाद पीएम की पार्टी के सभी सांसदों को अमक बिल के समर्थन में वोट करना ही होता है। 

4. यदि संसद का सत्र चालू नहीं है, और पीएम कोई ऐसा कानून गेजेट में छापना चाहता है जिसमें संसद की अनुमति की जरूरत है तो पीएम कैबिनेट के अनुमोदन से सीधे अध्यादेश निकालकर इसे गेजेट में छाप सकता है।

दुसरे शब्दों में, पीएम को संविधान इस तरह की कई शक्तियां देता है जिनका इस्तेमाल करके पीएम देश में कोई भी आदेश गेजेट में निकालकर सीधे लागू कर सकता है। बशर्ते पीएम की नीयत अमुक क़ानून को लागू करने की हो।  असल में कोई भी पीएम अपनी सरकार गेजेट से ही चलाता है, किन्तु पेड मीडिया इसकी चर्चा नहीं करता। वे जनता को संसद एवं संविधान के इर्द गिर्द ही बहस में उलझाए रखना चाहते है। इससे राजनैतिक दल यहाँ बहुमत नहीं है, वहां बहुमत नहीं है, विपक्ष हल्ला कर देगा, संसद नहीं चल रही, संसद में हंगामा हो गया, संविधान आड़े आ गया, कोर्ट ने मना कर दिया टाइप के बहाने बनाकर नागरिको को यह दर्शाते रहते है कि तकनिकी बाधाओ के कारण काम आगे नहीं बढ़ रहा।

यदि नागरिको को गेजेट की शक्ति के बारे में मालूमात हो जाए तो वे पीएम से कहेंगे कि संसद और संविधान को छोड़ो और ये आदेश गेजेट में छापो। तब पीएम के पास कोई बहाना नहीं बचेगा। तो नेता बगेरह संसद में आकर टाइम पास करके चले जाते है और जो काम उनको करना होता है उसके लिए गेजेट में आदेश निकाल देते है। लेकिन पब्लिक डिमांड का इश्यु आने पर संसद का हवाला दे देते है !! वैसे व्यवहारिक बात यह है कि देश की ज्यादातर समस्याओ का समाधान करने के लिए जिन कानूनों को लागू करने की जरूरत है उन्हें गेजेट में निकाला जा सकता है। पीएम को इसके लिए संसद में पैर रखने की जरूरत भी नहीं है। संसद में तो सभी सांसद टाइम पास और बातचीत करने जाते है। सरकार वे गेजेट से ही चलाते है।


(6) किसी राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ता और एक रिकालिस्ट में क्या बुनियादी अंतर है?

एक रिकालिस्ट इस नजरिये से सोचने का आदी होता है कि गेजेट में ऐसा क्या छापा जाए कि पुलिस एवं जजों के भ्रष्टाचार में कमी आये, बेरोजगारी एवं महंगाई की समस्या कम हो, शिक्षा का स्तर सुधरें, सरकारी अस्पतालों में सुधार आये आदि। गेजेट में हम ऐसा क्या छाप दें कि गंगा प्रदुषण मुक्त हो, गौ हत्या में कमी आये, मंदिरों का प्रशासन मजबूत हो, मिशनरीज एवं बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के प्रभाव में कमी आये, भारत की सेना आत्मनिर्भर एवं मजबूत हो आदी आदी। और फिर हम लिखे गए इन गेजेट नोटिफिकेशन के ड्राफ्ट पीएम को भेजते है। हम ये ड्राफ्ट नागरिको को भी देते है और उनसे भी कहते है कि वे पीएम से इन्हें गेजेट में छापने को कहे।

उदाहरण के लिए, यदि कोई सामान्य कार्यकर्ता भारत में जनसँख्या वृद्धि को लेकर चिंतित है तो वह पीएम से यह मांग करेगा कि - जनसँख्या नियंत्रण का कानून बनना चाहिए, या पीएम से कहेगा कि वे जनसँख्या नियंत्रण कानून बनाए। जबकि एक रिकालिस्ट सबसे पहले बह इबारत जुटाएगा जिसे गेजेट में छापने से जनसंख्या नियंत्रण होगा, और फिर वह पीएम के सामने यह मांग रखेगा कि भारत में जनसँख्या नियंत्रण करने के लिए पीएम को यह इबारत गेजेट में छापनी चाहिए। पेड मीडिया की चपेट में आकर भारत के कार्यकर्ता बहुधा अपना समय इस बात पर जाया कर देते है कि आज अमुक नेता ने क्या कहा उसके जवाब में उस नेता ने क्या कहा, किस आदमी को पीएम बनाना चाहिए, कौन सा नेता भाषण अच्छा देता है, कौन नेता चोर है, कौन राष्ट्रवादी है आदि। राजनीति के नाम पर 24*7 घंटे ऐसा अनुत्पादक विमर्श चलते रहता है। अमेरिका की राजनीति में भी इस तरह की स्टंट बाजी है, किन्तु वहां इसका प्रतिशत कम है। वहां के कार्यकर्ता इस बात से सूचित है कि राजनीति गेजेट पर चलती है। तो वे इस बात पर भी ध्यान देते है कि उनका शासक गेजेट में कौनसे क़ानून छाप रहा है। वहां के कार्यकर्ता वे इबारतें लिख कर अपने प्रतिनिधियों को भेजते है जिन्हें गेजेट में छापने से किसी समस्या का समाधान आएगा। और इस वजह से वहां पर वे बदलाव भी ला पाते है।

जबकि भारत के ज्यादातर कार्यकर्ता पहले दौर में समस्याएं उठाते है, और दुसरे दौर में यह सोचना शुरू करते है कि हम किस नेता को चुने कि वह पीएम बनकर इस समस्या का समाधान करेगा। और फिर वे पेड़ मीडिया द्वारा दिखाए गए 2-3 चेहरों में से किसी एक सबसे कम बुरे चेहरे को चुनते है और अगले 5 वर्ष तक उस समस्या के समाधान का इन्तजार करते है। फिर 5 साल बाद निराश होकर वे नेता बदल देते है। इस तरह नए नेता आते जाते रहते है और समस्या कायम रहती है। क्योंकि बहुधा भारत के नेता गेजेट में जो इबारत छापते है, वो लफ्ज भाषण में नहीं कहते, और जो लफ्ज भाषण में कहते है , उसे गेजेट में नहीं निकालते !! और इस वजह से समस्याओं का समाधान सिर्फ भाषणों एवं बहसों तक सीमित रहता है, किन्तु गेजेट की भूमिका न होने से धरातल पर कोई बदलाव नहीं आता।

उदाहरण के लिए भारत में गरीबी, भ्रष्टाचार, अशिक्षा, आदि समस्याएं है किन्तु भारत के कार्यकर्ता नेताओं से यह कभी नहीं पूछते कि - आप गेजेट में ऐसा क्या छाप दोगे कि गरीबी कम हो जायेगी। और जब नेताओं से जब ये पुछा नहीं जाता तो वे रैली में आते है और भाषण में गरीबी दूर करने का वादा करके चले जाते है। इस तरह यहाँ दो पक्षकार बन जाते है

कार्यकर्ता जो नेताजी को जादुगर मानते है, 

और नेताजी जो कार्यकर्ताओ को जादू दिखाते है !!


यदि भारत के कार्यकर्ता नेताओं से उन कानूनों के ड्राफ्ट माँगना शुरू करे जिनका वे वादा कर रहे है, तो नेताजी को चुनाव लड़ने से पूर्व वे ड्राफ्ट रखने पड़ेंगे जिनके गेजेट में आने ने से उनके द्वारा किये गए वादे पूरे होंगे। और तब यदि नेताजी सत्ता में आने के बाद उन कानूनों को गेजेट में नही छापते तो वे साफ तौर पर एक्सपोज हो जायेंगे कि उन्होंने वादा तोड़ दिया है, और इसी वजह से वे अपना वादा पूरा करेंगे !! अत: कार्यकर्ताओ हमारा आग्रह है कि जब भी वे किसी नेता-कार्यकर्ता को किसी समस्या पर बोलते देखें तो उनसे पूछे कि, जिस समस्या को आप उठा रहे है उसका समाधान करने के लिए आप गेजेट में कौनसी इबारत छापने का सुझाव देते है। यदि वे इसका लिखित ड्राफ्ट देने से इनकार कर देते है तो इसका आशय है कि, उनकी रूचि सिर्फ समस्या उठाने में है, समाधान में नहीं। असल में, उनकी स्थिति उस आर्कीट्रक्चर के समान है, जिसके पास उस इमारत कोई नक्षा नहीं है, जिस इमारत को बनाने का वे वादा कर रहे है।


(7) भारत के कार्यकर्ता समस्याओ का समाधान लाने में असफल क्यों रहे है?

आपने बहुधा देखा होगा कि विभिन्न क्षेत्रो में नागरिक एवं कार्यकर्ता विभिन्न समस्याओं जैसे गरीबी, भुखमरी, महंगाई, पुलिस सुधार, भ्रष्टाचार, जनसँख्या नियंत्रण आदि को उठाते रहते है, और इसके लिए प्रदर्शन आदि भी करते है। किन्तु सरकारें बदलती रहती है, और समस्याएं बनी रहती है। इसकी वजह यह है कि नागरिक जब सरकार के सामने अपनी मांग रखते है तो इसे गेजेट में छापे जा सकने वाली इबारत के रूप में नहीं रखते। अस्पष्ट मांग होने के कारण नेता एवं सरकारें आसानी से नागरिको को बुत्ता देने में सफल हो जाते है।

तो किसी समस्या के समाधान के लिए सरकार को बाध्य करने का सही तरीका क्या है ? निचे एक उदाहरण द्वारा बताया गया है कि नागरिको को किस तरह अपनी मांग सरकार के समक्ष रखनी चाहिए। मान लीजिये कि, आप चाहते है कि सरकार पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार की समस्या का समाधान करें। अब यहाँ सबसे बड़ी समस्या यह है कि सरकार में बैठे नेता, मंत्री आदि को पुलिस प्रणाली इस तरह कि चाहिए कि --

1. पुलिस अधिकारी उनके सभी प्रकार के सही गलत आदेशो का पालन करें।  

2. यदि पुलिसकर्मी उनके गलत आदेश नहीं मानता, या उन्हें घूस इकट्री करके नहीं देता है तो वे उसे ट्रांसफर या सस्पेंड कर सके। 

3. यदि पुलिसकर्मी उनके सभी गलत आदेशो का पूरी निष्ठा से पालन करता है तो वे उसे पदोन्नति एवं अच्छी जगह पोस्टिंग दे सके।


और धनिक वर्ग एवं रसूखदार लोगो को पुलिस व्यवस्था ऐसी चाहिए कि -

1. जब वे पैसे फेंकने लगे तो पुलिस उनके इशारे पर काम करें। 

2. यदि पुलिस अधिकारी ईमानदार है तो वे उच्चाधिकारी या नेता से गठजोड़ बनाकर अमुक अधिकारी का ट्रांसफर करवा सके। 

3. यदि पुलिस अधिकारी गलत आदेशो को मानने से इंकार करता है तो वे मंत्री को घूस देकर उसे नौकरी से निकलवा सके।


अब यदि आप सरकार से यह एक पंक्ति की मांग करते हो कि “पुलिस का भ्रष्टाचार दूर करो", तो हमारे विचार में यह एक अस्पष्ट एवं व्यर्थ मांग है। यह अस्पष्ट एवं व्यर्थ इसीलिए है, क्योंकि आपने "सुधार" शब्द का आशय निकालने की जिम्मेदारी सरकार पर छोड़ दी है। तो ज्यादातर सम्भावना है कि सरकार पुलिस व्यवस्था में इस तरह का "सुधार लाएगी जिससे पुलिस अधिकारियो पर मंत्रियो एवं राजनेताओ का नियंत्रण और भी बढ़े, और वे इस तरह के “नकारात्मक बदलाव को पुलिस सुधार के नाम पर विज्ञापित कर देंगे।


तो यदि कोई नागरिक / कार्यकर्ता पुलिस से भ्रष्टाचार दूर करने में रुचि लेता है तो उसे सबसे पहले वह ड्राफ्ट प्राप्त करना चाहिए जिसे गेजेट में छापने से भारतीय पुलिस में से भ्रष्टाचार दूर हो सकता है। और फिर सरकार से यह मांग करनी चाहिए कि वे पुलिस का भ्रष्टाचार कम करने के लिए अमुक ड्राफ्ट की इबारत गेजेट में छापें। और इसी तरह यदि आप सरकार से गरीबी कम करने की मांग कर रहे है तो आपके पास सबसे पहले वह ड्राफ्ट होना चाहिए जिसे गेजेट में छापने से गरीबी कम होगी, और तब आपको सरकार से यह मांग करनी चाहिए की वे गरीबी कम करने की अमुक इबारत गेजेट में छापें। यदि भारत के ज्यादा से ज्यादा कार्यकर्ता ड्राफ्ट आधारित मांग आगे बढ़ाने लगते है तो जल्दी ही भारत की ज्यादातर समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।


नोट = 

(i) विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के नेता एवं कार्यकर्ता जो भी समस्याएं उठा रहे है, उनसे समस्याओ के समाधान के ड्राफ्ट मांगिये।

(ii) यदि कोई बुद्धिजीवी सोशल मीडिया आदि मंचो पर किसी समस्या को उठा रहा है तो उससे पूछिए कि, अमुक समस्या का समाधान करने के लिए वे गेजेट में कौन-सी इबारत छापने का प्रस्ताव रख रहे है।


भारत की समस्या के समाधान के लिए ड्राफ्ट लिंक पर क्लिक करके ड्राफ्ट पढ़िए 👇 👇 

https://sachinarya007.blogspot.com/2020/09/right-to-recall-draft.html?m=1


सरकार से प्रस्तावित ड्राफ्ट की मांग कीजिए ।

PM को पोस्टकार्ड चिठ्ठी भेजकर प्रस्तावित ड्राफ्ट कानून की मांग कीजिए ।


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