पेड मीडिया के प्रायोजको का एजेंडा

 पेड मीडिया के प्रायोजको का एजेंडा



पेड मीडिया के प्रायोजको का मुख्य लक्ष्य अपने कारोबारी हितो की रक्षा करना है। चूंकि उनकी शक्ति का स्रोत हथियारों की तकनीक पर टिका हुआ है, अत: वे ऐसी कानून व्यवस्था चाहते है जिससे देश तकनिकी वस्तुओं का उत्पादन न कर सके। और इसके लिए वे गेजेट एवं पेड मीडिया का इस्तेमाल करते है।


गेजेट में वे ऐसी इबारतें छपवाते है जिससे कारोबार पर उनका एकाधिकार बढ़े,    

  और नागरिक इसे देख न पाए इसके लिए वे पेड मीडिया का इस्तेमाल करते है।

नीचे पेड मीडिया के एजेंडे के मुख्य बिन्दुओ की सूची दी गयी है।

यदि आप गेजेट का अवलोकन करना शुरू करेंगे तो इसे साफ़ तौर पर देख सकते है, किन्तु यदि आप राजनैतिक सूचनाओं के लिए पेड मीडिया पर निर्भर रहेंगे तो या तो इसे देख नहीं पाएंगे या फिर आपको लगेगा कि यह सब स्वत: ही हो रहा है, और कानूनों की इसमें कोई भूमिका नहीं है !!


(1) आर्थिक नियंत्रण बनाने के लिए: 

(1.1) भारत के प्राकृतिक संसाधन एवं खनिज लूटने के लिए उनका अधिग्रहण करना। (Rrp का अध्याय 5 एवं 6 देखें)

(1.2) आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण सेवाओं जैसे मीडिया, पॉवर, बैंकिंग, माइनिंग, रेलवे, एविएशन, ऑटो मोबाइल, निर्माण, कृषि, दवाइयाँ आदि के कारोबार पर एकाधिकार बनाना।


1. वे पेड मीडिया पार्टियों एवं उनके नेताओं का इस्तेमाल करके गेजेट में लगातार ऐसी इबारतें छपवायेंगे जिससे देश की राष्ट्रिय संपत्तियां, प्राकृतिक संसाधन, सार्वजनिक उपक्रम आदि बिक जायेंगे और ये संपत्तियां अमेरिकी-ब्रिटिश-फ्रेंच धनिकों के स्वामित्व में चली जाएगी।

2. पेड मीडिया में इस बेचान को एक सधी हुई आर्थिक नीति एवं साहसिक फैसले के रूप में बताया जाएगा। नागरिको का ध्यान बंटाने के लिए वे अस्पष्ट आर्थिक शब्दावली जैसे विनिवेश, विदेशी निवेश, आर्थिक सुधार, निजीकरण, पीपीपी मोड़, उदारीकरण, भूमंडलीकरण, पूंजीवाद, समाजवाद, साम्यवाद, नव उदारवाद आदि का इस्तेमाल करते है।


(1.3) भारत में तकनिकी उत्पादन करने वाली छोटी स्वदेशी इकाइयों को बाजार से बाहर करना। अमेरिकी-ब्रिटिश बहुराष्ट्रीय कम्पनियां जहाँ भी जाती है वहां तकनिकी उत्पादन करने वाले स्थानीय कारखानों को तोड़ने में काफी संजीदगी से काम करती है। तकनिकी आधार टूटने के बाद अमुक देश हर क्षेत्र में तकनीक के लिए अमेरिकी-ब्रिटिश कम्पनियों का ग्राहक बन जाता है।


1. मध्य एवं निम्न वर्ग (Bottom 80%) का गणितविज्ञान का आधार तोड़ना।

2. अनुत्पादक नस्ल का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने के लिए प्रतिभाशाली छात्रों को पेड मीडिया की सहायता से इतिहास, राजनीती विज्ञान, मनोरंजन, खेलकूद आदि जैसे क्षेत्रो में जाने के लिए प्रेरित करना।

3. रेग्रेसिव टेक्स सिस्टम में छोटी इकाइयों का कारोबार बड़ी फैक्ट्रियो के पास चला जाता है। अत: वे रिग्रेसिव टेक्स प्रणाली के समर्थन में, एवं प्रोग्रेसिव टेक्स के सख्त खिलाफ है। सेल्स टेक्स, एक्साइज टेक्स, बैट एवं जीएसटी आदि सभी रिग्रेसिव टेक्स प्रणालियाँ है, जबकि रिक्त भूमि कर प्रोग्रेसिव कर प्रणाली है। 

4. वे गेजेट में ऐसी इबारतें छापेंगे जिससे शहरी क्षेत्र की जमीन महंगी बनी रहे। जमीन की कीमतें ऊँची रहने से कारखाने लगाना मुश्किल हो जाता है। 

5. तकनिकी उत्पादन तोड़ने के लिए उन्हें अदालतों एवं पुलिस का ऐसा स्ट्रक्चर चाहिए कि पैसा फेंकने वाले का काम हो सके।


यदि किसी देश में अदालतें एवं पुलिस ईमानदार है तो तकनिकी विकास में विस्फोटक वृद्धि होने लगती है।


(2) सैन्य नियंत्रण बनाने के लिए:

आर्थिक नियंत्रण बढ़ने के साथ ही अगले चरण में वे सैन्य नियंत्रण बनाना शुरू करते है। यदि कोई देश अपने आर्थिक क्षेत्र अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों को देने से इनकार करता है तो फिर कोई न कोई बहाने से सेना भेजकर पहले सैन्य नियंत्रण बनाया जाता है, और फिर वे अर्थव्यवस्था का अधिग्रहण करना शुरू करते है। ईराक इसी मॉडल का शिकार हुआ था, और अब ईरान का नंबर है। भारत ने आर्थिक नियंत्रण देना स्वीकार कर लिया अतः हम युद्ध से बच गए। और अब वे सैन्य नियंत्रण बढ़ा रहे है।


(2.1) भारत की सेना पर नियंत्रण बनाने के लिए अमेरिकी-ब्रिटिश-फ्रेंच कम्पनियों के हथियार इंस्टाल करना।

सभी जटिल हथियारों को खरीदते समय निर्माता से End Use Monitoring Agreement करना होता है। EUMA और स्पेयर पार्ट्स की निर्भरता के कारण सेना हथियार का इस्तेमाल करने के लिए निर्माता पर हमेशा निर्भर बनी रहती है।


(2.2) भारत के सैन्य परमाणु कार्यक्रम को फिर से शुरू न होने देना।

पाकिस्तान के पास सामरिक बम है और वह आज भी अपनी परमाणु क्षमता निरंतर बढ़ा रहा है। भारत के पास सामरिक परमाणु बम नहीं है, और अमेरिका से 123 एग्रीमेंट होने के बाद 2008 से ही हमारा सैन्य परमाणु कार्यक्रम ठप है। 2010 में पोकरण-2 के मुख्य वैज्ञानिक ने सार्वजनिक रूप से यह बात कही थी कि भारत का हाइड्रोजन बम (रिटायर होने के बाद) रहा था। फिशन ब्लास्ट का परिक्षण सफल था का टेस्ट असफल, किन्तु हम फिशन और लोइल्ड डिवाइस का परिक्षण तो 1974 में ही सफलतापूर्वक कर चुके थे। बाद में इसकी पुष्टि परिक्षण में शामिल अन्य वैज्ञानिक ने भी की। इसके अलावा भारत ने आज तक कभी भी वातावरणीय परिक्षण भी नहीं किया है। और फिर भी हम अपना सैन्य परमाणु कार्यक्रम बंद कर चुके है। हमें इसे फिर से शुरू करने की आवश्यकता है।


(2.3) भारत एवं विशेष रूप से कश्मीर में अपने सैन्य अड्डे बनाना।

अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक ईरान+चीन के खिलाफ भारत की सेना एवं संसाधनों का इस्तेमाल करना चाहते है, और इसके लिए उन्हें भारत की जमीन-सेना पर पूर्ण नियंत्रण चाहिए। अभी भारत में जो हिन्दू-मुस्लिम तनाव नजर आ रहा है, यह इसी नीति का हिस्सा है। भारत में हिन्दू-मुस्लिम तनाव बढ़ने के बाद जब अमेरिका भारत की सेना एवं संसाधनों का इस्तेमाल ईरान के खिलाफ करेगा तो एंटी-मुस्लिम सेंटिमेंट की लहर के कारण भारतीय हिन्दू ईरान में सेना भेजने का विरोध नहीं करेंगे।


(2.4) नागरिको को हथियार विहीन बनाये रखना।

जिस देश के नागरिको के पास हथियार होते है उस देश की सेना को तो हराया जा सकता है, किन्तु देश के प्राकृतिक संसाधनों का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता। अत: अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों नागरिको को हथियार रखने की अनुमति देने के सख्त खिलाफ है।


(3) धार्मिक नियंत्रण बनाने के लिए:

अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों का गठजोड़ मिशनरीज के साथ है। अत: जब किसी देश पर उनका आर्थिक-सैन्य नियंत्रण बढ़ता है, तो अगले चरण में वे स्थानीय धर्मों को आपस में लड़वाकर कन्वर्जन के प्रयास शुरू करते है। पिछले 400 सालो से अमेरिकी-ब्रिटिश हथियार निर्माताओ का यही ट्रेक रहा है।


(3.1) भारत में सांप्रदायिक आधार पर अलगाववादी हिंसक गृह युद्ध की जमीन तैयार करना।

(3.2) भारतीय मुस्लिमों को अलग देश की मांग करने के लिए तैयार करना

(3.3) भारत को 3 हिस्सों में विभाजित करना ( कश्मीर एवं पूर्वोत्तर )। 1. वे शुरू से ही भारत में जनसँख्या नियंत्रण क़ानून डालने के खिलाफ रहे है। इससे धार्मिक जनसँख्या का संतुलन बिगड़ता है, और अलगाव की जमीन तैयार होती है।  2. इसके अलावा वे भारत में रह रहे 2 करोड़ अवैध विदेशी निवासियों को खदेडने के भी खिलाफ है, ताकि जरूरत पड़ने पर इन्हें किसी भी समय हथियार भेजकर गृह युद्ध ट्रिगर किया जा सके।  3. हिन्दू-मुस्लिम तनाव बढ़ाने के लिए वे गाय का भी कई तरीको से इस्तेमाल करते है। आजादी से पहले भी उन्होंने गाय का इस्तेमाल हिन्दू-मुस्लिम को लड़ाने में किया था।

(3.4) सरकारी नियंत्रण में लेकर मंदिरों की संपत्तियां लूटना एवं उत्सवों में होने वाले धार्मिक जमाव को तोडना।


वे मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने के खिलाफ है, ताकि मंत्रियो एवं जजों का इस्तेमाल करके मंदिर की जमीनो को बेचा जा सके। और उत्सवो में धार्मिक जमाव तोड़ने के लिए वे भ्रष्ट जजों एवं पेड मीडिया का इस्तेमाल करते है।

(3.5) देशी गाय की प्रजाति को लुप्त प्राय करके इसके उत्पादों पर एकाधिकार बनाना।

(3.6) भारत में बड़े पैमाने पर कन्वर्जन करना।

(4) सामाजिक एवं सांस्कृतिक एजेंडा : 

सामाजिक-पारिवारिक कलेश, जातीय-क्षेत्रीय अलगाव से उत्पादक व्यक्तियों को मानसिक एवं आर्थिक हानि होती है, और समग्र देश की उत्पादकता गिर जाती है। साथ ही इसमें कारोवार एवं धर्मांतरण भी है। संस्कृति का रूपांतरण करने से धर्मान्तर आसान हो जाता है।

(4.1) जाति एवं नस्ल के आधार पर हिंसक अलगाव खड़ा करना।

(4.2) लैंगिक आधार पर आपसी घर्षण बढ़ाकर परिवार एवं विवाह नामक संस्थाए ध्वस्त करना।

(4.3) फूहड़ता, अश्लीलता एवं नग्नता को सार्वजनिक स्वीकार्यता दिलाना।

(4.4) दवाईयों पर निर्भरता बढ़ाने के लिए खाद्य पदार्थों में मिलावट को बढ़ावा देना।

(4.5) अफीम एवं भांग पर प्रतिबंधो को कठोर करना।


इन प्रतिबंधो से दवाईयों की बिक्री बढ़ती है, और युवाओं को शराब, ड्रग आदि नशो की और धकेलना आसान हो जाता है। मिशनरीज कन्वर्जन में नशे का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर करती है। अभी पंजाब में इस मॉडल पर काम चल रहा है।


(5) राजनैतिक एजेंडा:

वे राजनीति में केंद्रीकृत व्यवस्था चाहते है ताकि बड़ी पार्टियों में पेड मीडिया का इस्तेमाल करके नेताओं को प्लांट किया जा सके। यदि पार्टियों एवं नेता उनके कंट्रोल से निकल गए तो वे गेजेट में इबारतें छपवाने की क्षमता खो देंगे।

(5.1) EVM जारी रखना।

evm उन व्यक्तियों के निर्देश पर परिणाम दिखाती है जो व्यक्ति इसका प्रोग्राम लिखते है। नेताओ को कंट्रोल करने के लिए evm उनका सबसे प्रभावी टूल है। अत: नेताओं को नियंत्रित करने के लिए वे भारत में evm जारी रखना चाहते है।


(5.2) छोटी पार्टियों को कमजोर करना।

वे ऐसे क़ानून छापते है जिससे छोटी पार्टियों के लिए चुनाव लड़ना मुश्किल होता जाए और सिर्फ बड़ी पार्टियाँ मैदान में रहे।


(5.3) बड़ी पार्टियों का केन्द्रीयकरण करना।

वे राजनैतिक पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र यानी कि पार्टी मेम्बर्स को वोटिंग राइट्स देने के खिलाफ है। इससे वे भारत की बड़ी पार्टियों में ऐसे नेताओं को आगे बढ़ा पाते है जो उनके एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम कर रहे है।


(5.4) युवाओं को राजनीती से दूर रहने के लिए प्रेरित करना

(5.5) नागरिको के मतदान एवं चुनावी अधिकारों में कटौती करना


उन्हें ऐसा सिस्टम चाहिए कि एक बार वोट देने के बाद अगले 5 वर्ष तक मतदाताओ की प्रशासनिक-राजनैतिक प्रक्रियाओ में कोई भूमिका न रहे, ताकि वे पीएम एवं मंत्रियो को घूस देकर या उनका हाथ मरोड़ कर मनमर्जी की इबारतें गेजेट में निकलवा सके। वोट वापसी एवं जूरी सिस्टम इस मेकेनिज्म को पूरी तरह से तोड़ देता है। अत: वे इन प्रक्रियाओं को लागू करने के खिलाफ है।


(6) प्रशासनिक एजेंडा:

पुलिस एवं अदालतों की सरंचना इस तरह रखना कि पैसा फेंककर अपना काम करवाया जा सके।

पुलिस एवं अदालतें सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। जो आदमी पुलिस एवं जजों को नियंत्रित करता है, उस पर कोई भी क़ानून लागू नहीं होता। क्योंकि जब भी कोई कानून तोड़ा जाता है अपराधी को पकड़ने का काम पुलिस, और दंड देने का काम जज करता है। वे इतने बड़े भारत में अपने एजेंडे को इसीलिए आगे बढ़ा पा रहे है, क्योंकि भारत में जज सिस्टम है। जज सिस्टम का डिजाइन इस तरह का होता है कि इसमें चयनात्मक न्याय दिया जा सकता है। मतलब, जब पैसे वाला आदमी फंसता है तो वह जज को पैसा देकर अपने पक्ष में फैसला निकलवा लेगा। इसी तरह जिसके पास पैसा है वह अपने प्रतिद्वंदियों को भी उल्टे सीधे मुकदमों में फंसा कर अंदर करवा सकता है।

अदालतों एवं पुलिस को पकड़ में रखने के लिए वे भारत में जज सिस्टम जारी रखना चाहते है, एवं जूरी सिस्टम से अत्यंत घृणा करते है। वे जूरी सिस्टम से इतनी घृणा करते है कि उन्होंने भारत की सभी पाठ्यपुस्तको में से इस लफ़्ज को निकाल दिया है। आपको भारत की किसी भी पाठ्यपुस्तक और यहाँ तक की कानून की किताबों तक में जूरी सिस्टम का जिक्र नहीं मिलेगा !!


उल्लेखनीय है कि, जूरी सिस्टम होना सबसे बड़ी वजह रही कि अमेरिका-ब्रिटेन-फ़्रांस भारत जैसे देशो से तकनीक के क्षेत्र में काफी आगे निकल गए। जूरी ने वहां के छोटे-मझौले कारोबारियों की जज-पुलिस-नेताओं के भ्रष्टाचार से रक्षा की और वे तकनिकी रूप से उन्नत विशालकाय बहुराष्ट्रीय कम्पनियां खड़ी कर पाए !!


(7) समाधान को टालने और समस्या से चिपके रहने वाले लोगो को चिन्हित करना :

आप पिछले 20 वर्षों का अवलोकन करें तो देखेंगे कि तमाम सत्ता परिवर्तनों के बावजूद गाड़ी इसी दिशा में आगे बढ़ रही है, और आगे भी गाड़ी इसी दिशा में जायेगी। पेड मीडिया में जितने भी चेहरे आप देखते है, वे पेड मीडिया के एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम करते है। जो व्यक्ति या नेता या संस्था या पार्टी या बुद्धिजीवी ऊपर दिए गए एजेंडे के किसी भी बिंदु के खिलाफ जायेगा उसे मुख्य धारा के पेड मीडिया में आप फिर नहीं देखेंगे।

बहरहाल, पेड मीडिया की भारत पर पकड़ कितनी गहरी है, इसे समझने का एक मात्र तरीका यह है कि - ऊपर दिए हुए किसी भी एक बिंदु को चुने जिसे आप समस्या की तरह देखते है। और फिर जब आप अमुक समस्या का समाधान ढूंढने की दिशा में जाना शुरू करेंगे तो आपका सामना पेड मीडिया की ताकत से होगा। जब तक आप सिर्फ समस्या से चिपके रहेंगे तब तक आप पेड मीडिया द्वारा रचे गए इस परिदृश्य को ठीक से समझ नहीं सकेंगे। निचे मैंने 1 बिंदु को आधार बनाकर उन कदमो के बारे में बताया है, जिन्हें उठाकर आप जान सकते है कि कौनसे नेता, कार्यकर्ता, पार्टियाँ, बुद्धिजीवी आदि पेड मीडिया के एजेंडे को आगे बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे है।


1.3.1. बॉटम 80% का गणित-विज्ञान का आधार तोड़ना:


सबसे पहले यह तय करें की क्या आप गणित-विज्ञान के गिरते स्तर को एक समस्या मानते है। यदि आप इसे समस्या नहीं मानते है तो ऐसे किसी अन्य बिंदु को चुन सकते है, जिसे आप समस्या मानते है। वैसे भारत के अधिकांश नागरिक इसे एक समस्या की तरह नहीं देखते है। और इसे समस्या के रूप में इसीलिए नहीं देखते क्योंकि पेड मीडिया ने उन्हें इसी तरह की पुड़िया दी है। 1990 से पहले तक भारत में गणित-विज्ञान का स्तर आज के मुकाबले काफी बेहतर था, जिसे तोड़ने के लिए धीरे धीरे उन्होंने गेजेट में कई इबारतें छापी। और जब भी वे गणित-विज्ञान का पाठ्यक्रम सरल करते है तब इसे पढ़ाई के बढ़ते बोझ से जोड़ देते है !!


पेड मीडिया पार्टियों के नेताओं एवं कार्यकर्ताओ से सोशल मीडिया पर सार्वजनिक रूप से निचे दिया गया प्रश्न पूछिए -

''भारत में गणित-विज्ञान का स्तर सुधारने के लिए आप गेजेट में जो इबारत छपवाना चाहते है, कृपया उसका ड्राफ्ट मुझे सार्वजनिक रूप से उपलब्ध करवाएं।'' यह प्रश्न सुनकर बहुधा वे आपसे इस आशय की बात कहेंगे कि हमारी पार्टी प्रत्येक छात्र को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा मुफ्त में देगी एवं सरकारी स्कूलों में सुधार लाएगी। तब आप उनसे स्पष्ट रूप से कहिये कि - 'श्रीमान, मुझे न तो गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा में रुचि है, न ही मुफ्त शिक्षा में रुचि है। मेरी रुचि सिर्फ गणित-विज्ञान का स्तर सुधारने में है। और मुझे सिर्फ उस ड्राफ्ट में रुचि है जिसे गेजेट में छापने से आपके हिसाब से गणित-विज्ञान के स्तर में सुधार आयेगा।'

कृपया इस बात को नोट करें कि पेड मीडिया के प्रायोजक अपना एजेंडा आगे बढ़ाने के लिए गेजेट की इबारतो का इस्तेमाल करते है। अत: यह बेहद जरूरी है कि आप गेजेट में आने वाली इबारत यानी ड्राफ्ट पर फोकस करें। यदि आपने अपनी चर्चा को ड्राफ्ट एवं गेजेट से जरा भी इधर उधर होने दिया तो वे आपको बुत्ता देने में कामयाब हो जायेंगे, और अपनी बकवास में आपका सालों तक ऐसा टाइम पास करेंगे कि आपको पता भी नही चलेगा। वे लगातार बात को ऐसे खांचे में ले जाने की कोशिश करेंगे कि ये दो शब्द (ड्राफ्ट और गेजेट) चर्चा से बाहर रहे। तो जैसे ही वे चर्चा को पटरी से उतारते है. आप तुरंत फिर से इस ट्रेक पर लौट आइये कि - 'मुझे गणित-विज्ञान का स्तर सुधारने की वह इबारत चाहिए है जिसे आप गेजेट में छापने का समर्थन करते है। यदि आपके पास इबारत है तो मुझे दो, वर्ना इस बिंदु पर आगे बात करने का कोई फायदा नहीं है। और यह साबित है कि आपको गणित-विज्ञान का स्तर सुधारने में कोई रुचि नहीं है।'


आप नोट करेंगे कि यदि आप ड्राफ्ट की चर्चा पर टिके रहते है तो अब अमुक नेता, कार्यकर्ता, पेड बुद्धिजीवी आपको न तो कोई जवाब देगा और न ही आपसे शिक्षा आदि के बारे में कोई डिस्कस करेगा। अब आप इसे और भी अच्छे से समझने के लिए अगला कदम उठाइये। आप वह ड्राफ्ट जुटाइए जिसे गेजेट में छापने से भारत में गणित-विज्ञान का स्तर सुधरेगा। और फिर आप अमुक व्यक्ति, नेता, कार्यकर्ता, पेड बुद्धिजीवी को अमुक ड्राफ्ट देकर कहिये कि - मेरा मानना है कि इस इबारत के गेजेट में आने से भारत में गणित-विज्ञान के गिरते स्तर में सुधार आने लगेगा। तो क्या आप इस ड्राफ्ट का समर्थन करते है।


(*) ऊपर जितनी भी समस्याएं एवं उनके बिंदु बताये गए है उनके समाधान के ड्राफ्ट Rrp पुस्तक के विभिन्न अध्यायों में दिए गए है। गणित-विज्ञान की शिक्षा का स्तर सुधारने का ड्राफ्ट अध्याय (27) में देखें। गेजेट क्या है और प्रधानमंत्री गेजेट नामक दस्तावेज से कैसे पूरा देश चलाते है, इसके बारे में विस्तृत विवरण अध्याय (4) में दिया गया है।


यदि अमुक व्यक्ति आपके द्वारा प्रस्तावित ड्राफ्ट का विरोध करता है तो फिर से उससे ड्राफ्ट मांगिये। उससे कहिये कि ठीक है मेरा ड्राफ्ट यदि कमजोर है, तो आप अपना ड्राफ्ट बताइये। तो बहुधा वे कहेंगे कि मेरे पास इस समस्या का समाधान करने के लिए कोई ड्राफ्ट नहीं है और हम तुम्हारे ड्राफ्ट का भी समर्थन नहीं करते। मतलब, वे फिर से समस्या को डिस्कस करने के ट्रेक पर चले जायेंगे ताकि ड्राफ्ट विहीन चर्चा जारी रखी जा सके। बस इस तरह आप जैसे जैसे अपने आस पास के उन कार्यकर्ताओ एवं पेड बुद्धिजीवियो आदि से यह प्रश्न पूछना शुरू करेंगे जो शिक्षा आदि पर लिखते-बोलते या गतिविधियों करते रहते है, वैसे वैसे आपको पेड मीडिया के एजेंडे एवं उनकी पकड़ का अंदाजा होता चला जाएगा।


और इसी तरह से आप पेड मीडिया पार्टियों एवं बुद्धिजीवियो आदि से अन्य मुद्दों पर ड्राफ्ट मांग सकते है। उदाहरण के लिए यदि कोई कार्यकर्ता, नेता, बुद्धिजीवी गौ हत्या का मुद्दा उठा रहा है तो उनसे कहिये कि वे गौ हत्या रोकने के लिए कौनसा ड्राफ्ट गेजेट में प्रकाशित करने का सुझाव देते है। या उनसे पूछिए कि, भारत में स्वदेशी तकनीक आधारित आधुनिक हथियारों का उत्पादन करने के हमें कौनसे कानून गेजेट में प्रकाशित करने चाहिए। आप पायेंगे कि पेड मीडिया के हितो को सरंक्षण करने वाले मुद्दों पर सभी राजनैतिक पार्टियों, नेताओं, बुद्धिजीवियों आदि का हमेशा एक सा ही स्टेंड रहेगा। उनके बयानों में आपको भिन्नता मिलेगी, लेकिन गेजेट में वे हमेशा ऐसी इबारतें छापेंगे जिससे पेड मीडिया का एजेंडा आगे बढे। 


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