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हरिसिंह नलवा की गाथा।

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हरिसिंह नलवा की गाथा। भारतवासियों ने अपने देश की भूमि को माता के रूप में माना है। स्वयं को भारत माता की सन्तान कहकर वे गौरव का अनुभव करते आ रहे हैं। आदि काल से आरम्भ कर अंग्रेजों के भारत छोड़ने तक अटक से कटक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक इस देश का विस्तार था। आदिकाल में तो अटक से परे भी भारत ही था, क्योंकि हमारा शान्तिमय विस्तारवाद असीम था और सारा संसार उसका क्षेत्र रहा है। हमारी नीति का आधार सत्य, न्याय और संस्कृति रहा है। शान्ति और धैर्य के साथ भारतवासी विश्व का उत्थान और पतन निहारते रहे हैं। अपने शान्तिमय पथ की रक्षा और अपनी मर्यादा के निर्वाह के लिए भारतवासी समय-समय पर आहुतियाँ भी देते रहे हैं। भारत इस सत्य को स्वीकार करता रहा है कि देश के लिए किया गया कोई भी बलिदान सर्वोत्तम बलिदान होता है। बलिदानी भारत का इतिहास साक्षी है कि अपने देश की शान्ति की सुरक्षा के लिए हमारी वीरता की परम्परा जीवित रही है। सत्य एवं शान्ति के पथ पर भारत अपने शौर्य तथा बलिदान का इतिहास लिखता रहा है। भारत सत्य का देश और संकल्प की भूमि है। हरिसिंह नलवा का जीवन भी शौर्य और वीरता से ओत-प्रोत है। वीरता क