भारत के खनिजो एवं प्राकृतिक संसाधनों की लूट

 भारत के खनिजो एवं प्राकृतिक संसाधनों की लूट



[खनिजो की लूट एवं सरकारी जमीनों का भ्रष्टाचार रोकने के लिए हमारा प्रस्ताव धनवापसी पासबुक जारी करने का है। धनवापसी पासबुक का प्रस्तावित कानून ड्राफ्ट देखने के लिए कृपया लिंक देखें। 

https://drive.google.com/drive/u/0/mobile/folders/1-ECjeeJKDzWIprpS5f4pL0SFEPGEpHHd?usp=drive_open


(1) खनिजो की लूट : पिछले 400 वर्षो से खनिज ऐसा क्षेत्र में जिसमें भ्रष्टाचार कम और लूट ज्यादा है। बड़े पैमाने पर खनिज लूटने के लिए जजों से लेकर पुलिस एवं नेताओं से गठजोड़ / नियंत्रण की जरूरत होती है। बड़े स्तर पर लूट चलाने वाला वर्ग पीएम / सीएम आदि को नियंत्रित कर लेता है, और छोटे स्तर के कारोबारी स्थानीय नेता-जज-अधिकारीयों से गठजोड़ बना लेते है। ईस्ट इण्डिया कम्पनी खनिज लटने के धंधे में थी। पेड मीडिया के प्रायोजक यानी अमेरिकी-ब्रिटिश हथियार निर्माता पिछले 400 सालों से यह कारोबार कर रहे है। पहले उन्होंने निर्णायक हथियार बनाए और फिर उन्होंने माइनिंग कंपनियां भी खोली। खनन में काफी आधुनिक मशीनरी का इस्तेमाल होता है, और ये मशीने सिर्फ कुछ गिनी चुनी कंपनियों को ही बनानी आती है। माइनिंग से बड़े पैमाने पर पैसा वही बना सकता है, या खनिज वही लूट सकता है जिसके पास ये मशीनरी हो।


उदाहरण के लिए, तेल निकालने की तकनीक दुनिया में सिर्फ 50-60 कंपनियों के पास ही है। तो जिस कम्पनी को इन कम्पनियों के मालिक ये मशीनरी देते है, वही कम्पनी खनिज निकाल पाती है। प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्ध कोयले, कच्चा तेल और स्टील के लिए लड़ा गया। खाड़ी युद्ध भी कच्चे तेल के लिए हुआ था। ब्रिटिश-फ्रांसिस संघर्ष का कारण भी खनिज थे। अभी ईरान पर भी जो युद्ध आने वाला है, वह भी खनिज (तेल) के लिए है। मताधिकार आने से पहले तक पेड मीडिया की प्रायोजक (हथियार निर्माता) किसी देश के खनिज लूटने के लिए सीधे सेना का इस्तेमाल करते थे। चुनाव प्रणाली आने के बाद पीएम को नियंत्रित करने के लिए वे पेड़ मीडिया का भी इस्तेमाल करने लगे। स्टेंडर्ड ऑयल का उदाहरण देखिये। यह कम्पनी खनिज लूटने में अग्रणी कम्पनी रही है। ऑयल रिफायनिंग की इस कम्पनी को 1870 में रोकेफेलर ने बनाया था, और 1911 में इसे कई हिस्सों में विभाजित करके भंग कर दिया गया। 1910 तक दुनिया का 70% तेल यही कम्पनी खोद रही थी। आज भी दुनिया का 40% तेल इसी के कब्जे में है। हालांकि अब इस कम्पनी की सभी सबसिडरी कम्पनीयों को ट्रेक करने में आपको 2-3 घंटे गूगल करना पड़ेगा !! रिलायंस की रिफायनिंग इकाई स्टेंडर्ड ऑयल की सबसिड़री कम्पनी की मशीनों पर ही चलती है। और इसी तरह से ये कोयला, लोहा, ताम्बा से लेकर सभी महत्त्वपूर्ण खनिज खोदते है।

और मझौले स्तर पर मित्तल, वेदांता, टाटा, जिंदल से लेकर अम्बानी, अडानी तक ऐसे कई कारोबारी है तो खनिजो के कारोबार में है। खनिजो की लूट इतने खुले तौर पर और इतनी सफाई से की जाती है, कि पूरे देश को मालूम ही नहीं होता कि किस पैमाने पर खनिज लूटे जा रहे है। बहुधा पेड मीडिया इस बिंदु को स्पर्श ही नहीं करता। ज्यादा से ज्यादा वे स्थानीय स्तर पर हो रहे बजरी, पत्थर आदि चिल्लर किस्म के खनिजो का मुद्दा उठाते रहते है, ताकि बड़ी लूट को चर्चा से बाहर रखा जा सके।


पेड मीडिया के प्रायोजको से मुख्य टकराव भी खनिजो की लूट को लेकर ही है। उन्हें खनिज लूटने है सिर्फ इसीलिए वे इतने बड़े मीडिया का खर्चा उठाते है, और उठा पाते है। यदि वे मुफ्त के खनिज नहीं लूट पाएंगे तो पेड मीडिया का घाटा भी नहीं उठा पायेंगे। उन्हें खनिज लूटने है इसीलिए वे राजनैतिक पार्टियों का खर्चा उठाते है, और उन्हें स्पोंसर करते है। उन्हें खनिज लूटने है इसीलिए उन्हें पीएम पर कंट्रोल चाहिए, जजों पर कंट्रोल चाहिए, पुलिस पर कंट्रोल चाहिए। उन्हें खनिज लूटने है, इसीलिए वे नागरिको को हथियार विहीन रखना चाहते है, और यह भी चाहते है कि अमुक देश अपने हथियारों का उत्पादन स्वयं न कर पाए। सार यह है कि सारी वैश्विक लड़ाई सिर्फ मुफ्त के खनिज एवं प्राकृतिक संसाधनों को लेकर है। क्योंकि खनिज एवं प्राकृतिक संसाधन ही वास्तविक संपत्ति है, कागज के नोट नहीं।


(1.1) 2019 में आवंटित की गयी कुछ कोयला खदानों का उदाहरण देखिये। ये आंकड़े कोयला मंत्रालय की वेबसाईट से लिए गए है -

154 रू प्रति टन 

156 रूप्रति टन

185 रू प्रति टन 

230 रू प्रति टन 

715 रू प्रति टन 

755रू प्रति टन 

1100 रू प्रति टन 

1230 रू प्रति टन 

1674 रू प्रति टन




दरों में इस तरह की भिन्नता क्यों ? 154 रुपये से 1674 रुपये !! लगभग 11 गुना !!

1. एक वैध कारण यह है कि - कोयले की गुणवत्ता में संभावित भिन्नता है। लेकिन यह एक मात्र कारण नहीं है।


2. दूसरा और वास्तविक कारण यह है कि – कई मामलों में गठजोड़ बनाकर नीलामी की शर्तों को इस तरह से ड्राफ्ट किया जाता है ताकि लक्षित कम्पनी को चिल्लर दामों में माइनिंग राइट्स दिए जा सके।

इस कारण को समझने के लिए कृपया निचे दी गयी तालिका देखें - कोयला मंत्रालय की वेबसाईट बताती है कि, कोई भी बोली लगा सकता है, लेकिन साथ में उन्होंने यह शर्त भी जोड़ी है कि अंत में उनके पास स्टील या सीमेंट का संयंत्र होना चाहिए !!


तो प्रत्येक खुली नीलामी में इन शर्तों के अलावा भी वे ऐसी कई शर्ते जोड़ते है, जो कहती है कि यदि आपके पास संयंत्र हो तो इसे अमुक खदान से अमुक दूरी पर ही होना चाहिए !! और अमुक संयंत्र को इतनी उतनी क्षमता का होना चाहिए। तो अंत में सिर्फ वे कुछ बड़े खिलाड़ी ही बोली लगा सकेंगे जिन्हें लाभ देने के लिए यह शर्त जोड़ी गयी थी!! इस तरह वे कार्टेल बनाकर कीमते कम बनाए रखते है। इसके अलावा, माइनिंग ब्लॉक का आकार इतना बड़ा रखा जाता है कि छोटे खिलाड़ी इसमें प्रतिभागी न बन सके। यदि हम कानून छापकर इस कार्टेल को तोड़ देते है तो ज्यादा प्रतिष्ठान बोली लगाने आयेंगे और हमें सभी खदानों पर ज्यादा रॉयल्टी मिलेगी। अभी यहाँ से भ्रष्टाचार शुरू हुआ है। अगले स्तर का भ्रष्टाचार और भी व्यापक है। वे जितना खनिज निकालते है, उससे काफी कम रॉयल्टी चुकाते है। राइटस लेने के बाद ज्यादातर खनिज अवैध रूप से निकाल लिया जाता है। वे सीधे मंत्रियो | जजों आदि को हफ्ता पहुंचा देते है, और मंत्रियो का आदेश आने के बाद कोई खनिज अधिकारी उनकी माइंस को सुपरवाइज करने कभी नहीं जाता !!


(1.2) जब ब्रिटिश भारत से गए तो टाटा को कई सारे माइनिंग राइट्स में देकर गए थे, और उनमें से एक माइंस की खबर सामने आने में 70 साल लग गए। टाटा के पास झारखण्ड में 25 पैसे प्रति बीघा के हिसाब से कोयला खोदने के राइट्स है !! आज तक किसी प्रधानमंत्री ने इसे 25 पैसे से बढ़ाकर 50 पैसे तक नहीं किया !! खबर का लिंक – tinyurl.com/TataCoalgate

https://www.firstpost.com/business/a-tata-coalgate-999-yr-mine-lease-at-25p-a-bigha-502200.html

(1.3) जिंदल शॉ लिमिटेड को 2010 में भीलवाड़ा में माइंस आवंटित हुई थी। और जिंदल ने नियमों की अवहेलना करके खनिज निकाले। माइंस से लगे हुए कस्बे (पुर) में लगभग 300-400 मकान जोखिमपूर्ण स्थिति तक क्षतिग्रस्त हो चुके है और कई परिवारों को अपने मकान छोड़कर अन्य जगहों पर किराए से रहना पड़ रहा है। खबर का लिंक - tinyurl.com/JindalBhI


पिछले 7 साल से भीलवाड़ा में जिंदल की इस अनियमितता के खिलाफ नागरिक आन्दोलन चल रहा है। बार बार धरने, प्रदर्शन, जुलुस, ज्ञापन वगेरह होते है। सभी पेड मीडिया पार्टियों के नेता समय समय पर जिंदल के खिलाफ प्रदर्शन की खानापूर्ती करते रहते है। खानापूर्ती इसीलिए क्योंकि ये सभी नेता खनिजो की इस लूट को रोकने के लिए आवश्यक कानून गेजेट में छापने का विरोध करते है। यदि पेड मीडिया पार्टियों के नेता अवैध खनन रोकने के लिए आवश्यक कानून गेजेट में छापने की मांग करेंगे तो पहला नुकसान यह होगा कि पेड मीडिया इन्हें कवरेज देना बंद कर देगा, और दूसरा नुकसान यह होगा कि, खान मालिक उन्हें चंदा देना बंद कर देंगे। और भारत में इस तरह की हजारो (हाँ, सैकड़ो नहीं हजारो) माइंस है, जहाँ इसी तरह की अनियमितताएं है।


सारी निर्माण इकाइयां, कारखाने, औद्योगिक विकास आदि कच्चे माल की सस्ती उपलब्धता पर निर्भर करता है। दुर्भाग्य से भारत में खनिजो की पहले से कमी है। इसी खनिज को लूटने के लिए ब्रिटिश-फ्रांसिस साम्राज्य भारत में आये। जब भारत आजाद हुआ तो नागरिको ने यह मांग की थी कि भारत के प्राकृतिक संसाधनों को भारत के समस्त नागरिको की संपत्ति घोषित करो। किन्तु जिन लोगो के हाथ में सत्ता आयी वे नागरिको की इस संयुक्त संपत्ति को खुद के कब्जे में रखना चाहते थे। अत: उन्होंने इन संसाधनों को सरकारी अधिकार में ले लिया। और आज सरकारे जो खनिज एवं प्राकृतिक संसाधन लुटा रही है, वह भारत के समस्त नागरिको की संपत्ति है। यदि हमारे पूर्वजो ने अंग्रेजो से लोहा लेकर उन्हें यहाँ से नहीं भगाया होता तो यह संपत्ति बचती नहीं थी। और अब बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के आने के बाद यह लूट और भी तेजी से हो रही है। यदि यह लूट नहीं रोकी गई तो जल्दी ही भारत के खनिज एवं प्राकृतिक संसाधन लूट लिए जायेंगे। और यदि एक बार हमने प्राकृतिक संसाधन गँवा दिए तो भारत औद्योगिक विकास के लिए हमेशा के लिए परजीवी हो जाएगा। क्योंकि जो देश कच्चे माल के लिए आयात पर निर्भर हो जाता है उसकी रीढ़ हमेशा के लिए टूट जाती है।


(2) सरकारी भूमि का किराया :

मान लीजिए आप के पास एक मकान है जिसे आप ने किराये पर दिया है, तो इसका किराया किसको जाना चाहिए, आपको या सरकार को ? आप कहेंगे कि आप को जाना चाहिए। ऐसे ही यदि पूछा जाए कि एक मकान जिसके 10 बराबर के मालिक है, जिसे किराये पर दिया गया है, तो किराया किसे जाना चाहिए? तब आप कहेंगे कि दस मालिकों को बराबर-बराबर किराया जाना चाहिए।


इसी तरह यदि कोई बहुत बड़ा प्लाट हो, जिसके 130 करोड़ मालिक है, और वो किराये पर दिया जाता है तो उसका किराया सभी 120 करोड़ लोगों में बराबर-बराबर बटना चाहिए। क्या ऐसे प्लाट है जिसके 130 करोड़ मालिक है? जी हाँ, आईआईएम प्लॉट, जेएनयू प्लॉट, सभी यूजीसी प्लॉट, सभी एयरपोर्ट प्लॉट और हजारों ऐसे भारत सरकार के प्लॉटों से मिलने वाला जमीन का किराया और भारत के सभी खनिजों जैसे कोयला और कच्चे तेल से मिलने वाली सारी रॉयल्टी हम भारत के नागरिकों और हमारी सेना को जानी चाहिए किसी और को नहीं। क्योंकि भारत की संपत्ति के मालिक इसके 130 करोड़ नागरिक है। और यह रॉयल्टी व किराया सीधे ही मिलना चाहिए किसी योजना के तहत नहीं। इस राशि का एक तिहाई हिस्सा सेना को जाना चाहिए, और बाकी दो तिहाई सभी नागरिकों में बराबर-बराबर बंटना चाहिए। भारत सरकार, केन्द्र और राज्यों के पास काफी उंचे बाजार-मूल्य वाले हजारों भूखंड है। एक छोटा सा उदाहरण प्रस्तुत है :-


इनका किराया कितना होगा यदि ये प्लॉट बिल्डरों को दिए जाते हैं ?


प्लॉट के बाजार मूल्य के 3 प्रतिशत पर इन 9 प्लॉटों का किराया = 27 हजार करोड * 3/100 = 810 करोड़ रूपए प्रति वर्ष = सात रूपए प्रति नागरिक प्रति वर्ष बनता है। अब यह प्लॉट मुंबई एयरपोर्ट, अहमदाबाद एयरपोर्ट, बंगलौर हवाई अड्डा आदि जैसे प्रमुख प्लॉटों के मूल्यों की तुलना में कहीं नहीं ठहरता। कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं :-


(नोट : उपरोक्त कीमतें 2020 के वास्तविक बाजार-मूल्य की तुलना में काफी कम है जब यह संस्करण लिखा जा रहा था।)


इनका किराया कितना होगा यदि ये प्लॉट बिल्डरों को दिए जाते हैं ? एयरपोर्ट प्लाटों का किराया प्लॉट के बाजार-मूल्यो पर 3% की दर से = 440,800 करोड़ * 3/100 = 13,224 करोड़ प्रति वर्ष = 120 रू प्रति नागरिक प्रति वर्ष !! सरकार के पास अनुमानत: 50,000 प्लॉट हैं। यदि किराया प्रत्येक प्लॉट से औसतन प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 20 पैसे जितना कम भी हो तो किराया 12000 रू प्रति व्यक्ति / वर्ष से ज्यादा हो जाता है। या तो हम आम लोगों को यह किराया मिलेगा अथवा जमीन की कीमतों में बहुत कमी आएगी। (वास्तव में जमीन की कीमत ही घटेगी) जिससे हम आम लोगों को अपनी कम आय पर घर खरीदना और अपना व्यवसाय शुरू करना आसान हो जाएगा।


(2.1) जमीन का किराया वसूलने का प्रभाव यदि धनवापसी पासबुक का प्रस्तावित क़ानून गेजेट में छाप दिया जाता है तो इन दो में से कोई एक स्थिति घटित होगी –


1. या तो हम आम लोगों को लगभग 500 या 1000 रूपया प्रति व्यक्ति हर महीने जमीन का किराया मिलेगा। अथवा 2. जमीन की कीमत घटेगी, क्योंकि सार्वजनिक भूमि का किराया देना होगा और इसीलिए भूमि-संग्रह करना बहुत महंगा पड़ेगा।


दूसरी घटना के होने की संभावना ज्यादा है। अब यदि जमीन की कीमत गिरती है तो घरों की कीमत भी कम होगी जिससे आम लोगों का जीवन सुधरेगा। हम आम लोगों में से कई लोग, जो झुग्गियों में रहते हैं, वे शायद एक शयनकक्ष-हॉल-रसोई (One Bhk) फ्लैट में जा सकेंगे। और यदि जमीन की कीमत घटती है तो व्यवसायों की संख्या बढ़ेगी। क्योंकि जब जमीन की लागत गिरती है तो कारीगरों के लिए व्यवसाय करना आसान हो जाता है, और आम लोगों को ज्यादा रोजगार और वेतन मिलता है। बड़े पैमाने पर कारखानों की स्थापना से खनिजों के मूल्य बढ़ेंगे और इसलिए खनिजों की रॉयल्टी भी बढ़ेगी। इसलिए किसी भी स्थिति में आईआईएम प्लॉट, आईआईएम, जेएनयू प्लॉट व हजारों अन्य प्लॉटों और खदानों से प्राप्त होने वाले किराए एवं रॉयल्टी का वितरण नागरिको में करने से देश एवं आम जन को लाभ हर स्थिति में लाभ होगा। इससे गरीबों और मध्यम वर्ग के लोगों की क्रयशक्ति बढेगी, क्रयशक्ति बढ़ने से मांग बढ़ेगी, उद्योग बढ़ेंगे, रोजगार बढेगा। इसके अलावा प्रस्तावित वोट वापसी पासबुक में यह प्रावधान है कि खनिज+रॉयल्टी से प्राप्त राशि का 33% हिस्सा सीधे सेना को जाएगा, ताकि हम हथियार निर्माण का बजट बढ़ा सके। तो इस प्रस्ताव के आने से हमारी सेना भी मजबूत होगी।


(2.3) जमीन का किराया न वसूलने का कु-प्रभाव

सार्वजनिक भूमि पर किराया जमा न करने का प्रभाव खुले अन्याय की तरह है। अमीरों द्वारा गरीबों का शोषण और आर्थिक असमानता अन्यायपूर्ण ढंग से बढ़ेगा। यदि सरकारी भूखंडो का किराया सीधे नागरिको के खाते में जमा नहीं किया जाता है, तो सरकार धीरे धीरे ज्यादातर कीमती भूखंड विदेशी कम्पनियों को बेच देगी। वे इसके लिए निजीकरण, विनेवेश आदि योजनाओं का इस्तेमाल करते है। जब भी वे कोई सरकारी उपक्रम विदेशी कम्पनी को बेचते (विनिवेश) है तो इसमें जमीन की कीमत को बाजार मूल्य से काफी कम करके दर्शाया जाता है। जब कोई सरकारी उपक्रम किसी कम्पनी को 500 करोड़ में बेचा जाता है तो इसमें लगभग 1000 करोड़ की जमीन भी शामिल होती है। किन्तु लेखो में इस जमीन की कीमत 100 करोड़ ही दर्ज की जाती है। इस तरह जब भी सरकार कोई भूखंड, सार्वजानिक उपक्रम, सरकारी कम्पनी आदि बेचती है, तो घूस के रूप में मोटी राशि लेकर चिल्लर भाव में जमीन भी बेच देती है। कीमती सरकारी जमीन को इस तरह से चिल्लर दाम में बेच देना, भारत में दूसरा सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है।


(3) समाधान - प्रस्तावित धनवापसी पासबुक का सार

धन वापसी पासबुक एक प्रस्तावित कानून है जो भारत के खनिज एवं प्राकृतिक संसाधनों की लूट रोकने के लिए लिखा गया है। इस प्रस्तावित कानून के गेजेट में छपने के तुरंत बाद भारत सरकार के नियंत्रण में मौजूद सभी खनिज एवं प्राकृतिक संसाधन देश के नागरिको की संपत्ति घोषित हो जायेंगे, और देश के समस्त खनिज+स्पेक्ट्रम+सरकारी भूमि से प्राप्त होने वाली रॉयल्टी एवं किराया 135 करोड़ भारतीयों का संयुक्त खाता नामक बैंक एकाउंट में जमा होगा। इसका एक स्वत: प्रभाव यह भी होगा कि भुखमरी दूर होगी, और एक सीमा तक गरीबी में भी कमी आएगी।


(1) खनिजो की नीलामी करके पैसा इकट्ठा करने वाला राष्ट्रिय खनिज रॉयल्टी अधिकारी धन वापसी पासबुक में दायरे में होगा और नागरिक पटवारी कार्यालय में जाकर उसे नौकरी से निकालने के लिए अपनी स्वीकृति दे सकेंगे। यदि खनिज अधिकारी या उसके स्टाफ के खिलाफ घपला करने की या अन्य कोई शिकायत आती है तो सुनवाई करने और दंड देने की शक्ति जज के पास न होकर आम नागरिको की जूरी के पास रहेगी। यह कानून देश की सभी खदानों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाता है।


(2) इस कानून के गेजेट में छपने के 30 दिनों के भीतर प्रत्येक मतदाता को एक धनवापसी पासबुक मिलेगी। तब भारत की केंद्र सरकार को होने वाली खनिज रॉयल्टी, स्पेक्ट्रम रॉयल्टी और केंद्र सरकार द्वारा अधिगृहीत जमीनों के किराये से प्राप्त राशि का 65% हिस्सा भारत के नागरिकों में समान रूप से बांटा जायेगा, और हर महीने यह धनराशि सीधे आपके बैंक खाते में जमा होगी। शेष 35% हिस्से का उपयोग सिर्फ सेना में सुधार के लिए खर्च होगा। जब आप राशि प्राप्त करेंगे तो इसकी एंट्री धन वापसी पासबुक में आएगी।


(3) यह कानून ऐसा कोई वादा नहीं करता कि आपको प्रति महीने 500 रू या 1000 रू या कोई स्थिर राशि प्राप्त होगी। यदि खनिजों। स्पेक्ट्रम का या जमीनों का बाजार मूल्य बढ़ता है तो आमदनी और किराया बढ़ सकता है। लेकिन यदि खनिज आमदनी और किराया घटता है तो नागरिकों को हर महीने मिलने वाली यह राशि भी घटेगी।


• स्पष्टीकरण : खनिज रॉयल्टी के रूप में मिलने वाली यह राशि सरकार की तरफ से दिया गया अनुदान या सहायता नहीं है।


चूंकि, देश के खनिज संसाधनों पर देश के सभी नागरिको का बराबर हक है अत: यह राशि सभी भारतीयों को बराबर मिलेगी. और सरकार गरीब-अमीर के आधार पर इसके वितरण पर ऐसा कोई नियम नहीं लगाएगी, जिससे गरीब आदमी को ज्यादा हिस्सा एवं अमीर आदमी कम पैसा मिले। किन्तु यदि प्रधानमंत्री प्रस्तावित टू चाइल्ड पालिसी क़ानून गेजेट में छाप देते है तो टू चाइल्ड पालिसी के ड्राफ्ट में दिए गए निर्देशों के अनुसार संतानों की संख्या के आधार पर नागरिको को प्रति माह प्राप्त होने वाली खनिज रोयल्टी में कटौती / बढ़ोतरी होगी।


प्रस्तावित धन वापसी पासबुक कानून का ड्राफ्ट 👇 👇 


https://drive.google.com/drive/u/0/mobile/folders/1-ECjeeJKDzWIprpS5f4pL0SFEPGEpHHd?usp=drive_open


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